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"जीवन एक पाठशाला"



आज का युग शिक्षण युग हैं । हम हमेंशा मानते हैं कि हमें कॉलेजों, स्कूलों या विश्वविद्यालयों से शिक्षा मिलती है । तभी मैं हमेंशा सोचती हूं कि हमें जो शिक्षा मिलती है, वह जीवन जीने के लिए काफी है ?...... नहीं...


वर्तमान काल में हम जीन डिग्रियों के लिए अध्ययन करते हैं, वे सभी व्यावसायिक शिक्षा हैं । इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बुद्धि का विकास करना, एक पेशेवर बनाना और अपने जीवन के लिए आवश्यक धन कमाना है। यह शिक्षा एक व्यक्ति को साक्षर बनाने के लिए आवश्यक है । फिर भी अगर कोई व्यक्ति जीवन भर के लिए व्यावसायिक शिक्षा के साथ बैठा रहे तो साधन संपन्न जरूर हो जाएगा, लेकिन मौलिक जीवन जीने की शिक्षा बाकी रह जाएगी। जैसे कोमसॅ का छात्र वाणिज्य विषय में निपुण बने, इंजीनियर का छात्र यंत्र विषय में माहितगार बने और सायनस का छात्र विज्ञान विषय में जानकारी पाऐ । शिक्षा आज उसी तरह काम कर रही है, लेकिन इसकी वजह यह सामने आई है कि विज्ञान का निपुण छात्र अक्सर जीवन की प्रयोगशाला में फेैल हो जाता है। वाणिज्य विषय का छात्र जीवन के विषय में नुकसान कर रहा है। ऐसे कई उदाहरणों हैं, जिन्होंने बिजनेस मैनेजमेंट में गोल्ड मेडल जीते हैं, जो लाइफ मैनेजमेंट में फेैल हो गए हैं।


आज की शिक्षा थोड़ी सूचनात्मक होती जा रही है और जिस तरह से छात्रों को सिर्फ सूचना उन्मुख ही नहीं बल्कि जीवनलक्षी भी सिखाया जाना चाहिये। क्योंकि पढ़-लिखकर उसे समाज के बीच में रहना है, इसलिए सिर्फ थियरी से काम नहीं चलेगा । जीवन की प्रयोगशाला में अनुभव के प्रेकटीकल की भी आवश्यकता होती है। बुक नॉलेज पाने का एक ही तरीका है कि आज का स्टूडेंट जो बहुत अच्छा स्टूडेंट है, जो पहले नंबर पास होता था वो कहीं बातों में डफफर रह जाता हैं। गणित में 100 में से 100 अंक लाने वाला छात्र लाइफ के व्यावहारिक प्रैक्टिल के गणित में फैल हो जाता है।


स्वामी सच्चिदानंदजी ने कहा है, ‘सभी शिक्षा पाठ्यक्रमों में से नहीं होती । शिक्षक को अपनी ओर से पढ़ाना होता है और वो है अच्छी संस्कृति की शिक्षा । अनुशासन और अच्छे आचरण की शिक्षा के लिए जीवन भर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है'। जैसे लोटरी खरीदते ही आप रातोंरात अमीर हो सकते हो पर संस्काररूपी लोटरी आप खरीद नहीं सकते । आप रातोंरात अमीर जरूर हो सकते हो लेकिन रातोंरात सुसंस्कृत नहीं हो सकते । संस्कार आने में पीढ़ियों लग सकती है, और जाने में भी पीढ़ियों लग सकती हैं। इसलिए शिक्षा के साथ जीवन या जीवन जीने के मूल्यों, अनुशासन या नैतिकता को सीखना बहुत महत्वपूर्ण है ।(जैसे विनम्रता, विवेक, सभ्यता) मानव के दिमाग की रचना के बारे में सिखाया जाता हैं, लेकिन दिमाग के अंदर कैसे विचार होने चाहिए उसकी किसीको परवाह नहीं है। जबान की रचना के बारे में सिखाया जाता है, लेकिन कोई भी शिक्षक ये नहीं सिखाता कि इस जबान से क्या कहना और क्या नहीं कहना चाहिए। कोई भी शिक्षक आज सिलेबस के बहार का कुछ भी नहीं सिखाते, जैसे गुटका मत खाओ... बड़ों का सम्मान करें... महापुरुषों के किरदारों को पढ़ो... अंधविश्वास को छोड़ दो और विवेक के साथ जीओ । घर में माता-पिता या भाई-बहनों के साथ अच्छा व्यवहार न करते छात्रों की जिम्मेदारी शिक्षकों की नहीं है। क्योंकि हमारे स्कूलों में मानवीय संबंधों या जीवन मूल्यों के पाठ नहीं पढ़ाया जाता। इसलिए, जो व्यक्ति जीवन में अधिक नैतिक या व्यावहारिक रूप से सफल हो, वो उस व्यक्ति से अधिक आगे है जो जीवन में साधन संपन्न जरूर होते है, पर नैतिक रूप से असफल है उसे हम कॅजदार कह सकते हैं । अगर दुनिया में प्रोफेशनल एजयुकेशन जारी रहे तो इंसान की प्रगति के बजाई अधोगति हो जाएगी। लोगों के पास सिर्फ बौद्धिक विकास, धन-दिमाग और शिक्षा बची होगी। वो लोग के पास सिर्फ अपनी स्थिति का अहंकार, ज्ञान का अहंकार, बुद्धि का अहंकार और अवसाद जो इस पेशेवर शिक्षा का कमजोर भाग है । बोर्ड परीक्षा और परिणाम के बाद आत्महत्या की कहानी कौन नहीं जानता? केवल व्यावसायिक और व्यावहारिक शिक्षा की उचित मात्रा ही हमें इस सब से बचा सकती है और तभी हम प्रगति के पथ पर जा सकते हैं।


व्यावहारिक शिक्षा को जीवनोन्मुखी शिक्षा भी कहा जा सकता है। इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य संस्कार सिंचाई है। ऐसी शिक्षा में शिक्षक कौन हैं? इस तरह की शिक्षा एक परिवार से शुरू होती है, इसलिए माता-पिता और दादा-दादी से विरासत में मिली संस्कृति विरासत छात्र के जीवन की नींव बनाती है, इसलिए परिवार के सदस्यों को इस तरह के शिक्षक कहा जा सकता है। माता-पिता से नीति का पाठ जीवन में बहुत काम आता है। इसमें मां की अहम भूमिका है। आज की युवा पीढ़ी के पास सब कुछ है, उनके पास ज्ञान है पर मजबूत इरादों की कमी है। कोई गंभीरता और परिपक्वता नहीं है। उनके पास युवापन है लेकिन कोई दृष्टि नहीं है, युवा पीढ़ी दिशाहीन हो गई है। इसे एक वात कहती हूँ की एक नाविक था, जिसके पास पांच यांत्रिक नावें थीं। फिर भी वो अपने बेटे को हाथ से नाव कैसे चलायीं जाती है वो सिखा रहा था। उनके बेटे ने, उन्हें दी गई ट्रेनिंग का विरोध किया । पिताने बहुत अच्छी सीख देते बेटा के बोले , जिंदगी में कैसा परिवर्तन, कैसा बदलाव आएगा किसी को नहीं पता। मशीन धोखा हो सकता है, लेकिन हाथ धोखा नहीं देते हैं। आपको हर तरह के बदलाव की संभावना के बारे में सोचना होगा। समय के बदलाव, आदमी की इच्छाओं को पूछ कर दरवाजे पर दस्तक नहीं देता। जो विपरीत परिस्थितियों में भी सक्षम हो, उसी को सफलता प्राप्त होती है। क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का एक अनिवार्य क्रम है। इसलिए घर के बडे़(वडील) अपने बच्चों के सारथी बनो, उन्हें समझें, जहाँ अनिवार्य हैं उन्हें अच्छी सीख देकर सफलता की दिशा बताए। अपने घर में संस्कृति, अनुशासन, विनय, विनम्र और प्रेमपूर्ण माहौल बनाएं। जिस तरह दादा-दादी कहानियां सुनाकर बच्चे की कल्पना को विकसित कर सकते हैं, वह आज की कार्टून फिल्मों से संभव नहीं है। दादा-दादी आज के युग में खो गए हैं । परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता , मानसिकता, शक्ति हमें परिवार के बुजुर्गों से मिलतीं है। पर आज एक संयुक्त परिवार की भावना रही नहीं। व्यावसायिक शिक्षा की बुद्धिमत्ता के साथ हम संयुक्त परिवारों की पहुंच से आगे निकलकर टीवी, धारावाहिकों तक पहुंच गए हैं। टी.वी कार्यक्रमों ने व्यवहार, संस्कृति और पारंपरिक संस्कृति की रेखा पार कर ली है अब हर किसी के पास निजी जीवन है और हर जोड़े(कपल) को आजादी चाहिए है । इस लिए सद्बुद्धि, सद्गुण और सभ्यता के बिना किसी भी प्रकार की शिक्षा अधूरी है। यदि परिवार द्वारा उचित व्यवहारिक शिक्षा प्रदान की जाए तो जीवन की दिशा बदल सकती हैं। ऐसी शिक्षा का कोई मूल्य आंका नहीं जा सकता ।


जीवनोन्मुखी शिक्षा का एक और ज्ञान पुस्तकों से प्राप्त होता है। किताब जैसा कोई दोस्त नहीं है और उनके जैसा कोई साथी नहीं है। अच्छी किताब पढ़ना, महापुरुषों की आत्मकथा और अनुभव कई लोगों के जीवन उजागर कर सकते है। हमें उनके जीवन चरित्र , व्यवहार जैसा आचरण करना होगा। व्यावहारिक शिक्षा हमें इस तरह से शांति, खुशियोंके रास्ते पर ले जाती है। अब जब हम टेलीविजन पर पुरा ध्यान देते हैं तो हमारी किताबों से विरासत खो चुकी हैं । टेलीविजन व्यक्ति में संस्कार सिंचन कर नहीं सकता, वो एक मनोरंजन का माध्यम हैं। इसलिए जीवन में उँचाइ प्राप्त करनी हो तो पुस्तक का साथ कभी न छोडे।


व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने का तीसरा तरीका है 'संग'। एक कहावत है , "संग जैसा रंग"। कहा जाता है कई बार अच्छे दोस्त अपने अनुभव के साथ दूसरे दोस्त की संस्कृति को जागृत कर लेते हैं । अच्छे संगति का सीधा प्रभाव मनुष्य के विचारों पर पड़ता है और केवल विचार ही मनुष्य के हृदय को अच्छा बनाता हैं। सत्संग ही हमें ज्ञान की ऊंचाई दे सकता है। बड़ों(वडील), आप अपने बच्चों के दोस्त बनो। आप उसके दोस्तों के बारे में जानो, उससे मिलो और उसे अच्छे-बुरे का एहसास प्रेम से समझाओ। बुरा संघ अधोगति की और ले जाता है । जैसे एक बार धातुएँ, सोना और तांबे मिले। तांबे ने सोना को बताया कि तुम भी पीले हो और मैं भी पीला हूँ। अगर हम मिल जाये तो लोगों को क्या पता चलेगा? सोना ने अच्छी तरह से जवाब दिया, ' भाई , मेरा कैरेट कम हो जाएगा उसका क्या? ' तो, हम जहां भी जाते हैं, दुबई, गुजरात या अमेरिका हमारा व्यावहारिक संस्कृति का केरेट थोड़ा सा भी कम नहीं होना चाहिए । हमें खुद को बेस्ट बनाकर जीवन को बेहतर बनाने की इच्छा करनी चाहिए। सुसंग एक शिक्षक का काम करता हैं और जीवन की शिक्षा देते हैं। इस प्रकार व्यावहारिक शिक्षा परिवार, अच्छी किताबों और अच्छे मित्रों से प्राप्त होती है।


बस एक चीज जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि समुद्र में गिरने के बाद जीवन के अनुभव से कई सबक सीखे जाते हैं। जैसे त्रिकोण के तीन कोणों का योग 180 डिग्री का होता है वो माहिती रखने वाले विद्यार्थी को यह भी माहिती होनी चाहिए की घर के चारों कोणों में रहने वाले लोगों के मन का गणित क्या हैं। अगर हम नहीं जानते कि दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग ऑक्सीजन मिलने से पानी का उत्पादन होता है तो कुछ भी खट्टा नहीं होगा, लेकिन दुनिया में बुद्धि के दो भागों और मानवता के एक हिस्से के मिश्रण के बिना प्रेम की केमिस्ट्री नहीं बनाई जा सकती । अगर आपको यह समझ में नहीं आता है तो आपकी जिंदगी की कार भी पंचर हो सकती हैं । अगर कोई मिल टिकाऊ साड़ी का उत्पादन करना चाहती है तो सावधान रहना होगा कि साड़ी का कोई भी धागा कच्चा ना रह जाए, उसकी सावधानी बरतने पडेगी। वैसे ही देश को मजबूत बनाने के लिए हर नागरिक को शिष्टाचार, संस्कारी और समझदार होना जरूरी है। इसीलिए मैंने टाइटल दिया है, " जीवन एक पाठशाला "। यदि मानव को खुद के मूल्य को बढ़ाना है, तो पेशेवर और व्यावहारिक दोनों का मूल्यांकन समानांतर रूप से करना होगा, तो कोई विश्व शक्ति आपको सफल होने से नहीं रोक पाएगी।



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